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चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला ! ‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलाने वाला;
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न—फिरूँ पीछे; किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला
मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला, हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,...
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सुखकर, सुन्दर साक़ी का; और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको ...
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सुन, कलकल, छलछल मधु- घट से गिरती प्यालों में हाला, सुन, रुनझुन रुनझुन चल वितरण करती मधु साक़ीबाला, बस आ पहुँचे, दूर नहीं कुछ, चार क़दम अब चलना है; चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साक़ी हैं; पीड़ा में आनन्द जिसे हो, आए मेरी मधुशाला
पंडित, मोमिन, पादरियों के फंदों को जो काट चुका कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला
बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला, बैठा अपने भवन मुअज़्ज़िन देकर मस्जिद में ताला, लुटे ख़ज़ाने नरपतियों के गिरीं गढ़ों की दीवारें; रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला
एक बरस में एक बार ही जलती होली की ज्वाला, एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला; दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो, दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मानती मधुशाला |
सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल हाला, बादल बन-बन आए साक़ी, भूमि बने मधु का प्याला, झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर, बेली, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला|
अधरों पर हो कोई भी रस जिह्वा पर लगती हाला, भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला, हर सूरत साक़ी की सूरत में परिवर्तित हो जाती, आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला|
पौधे आज बने हैं साक़ी ले-ले फूलों का प्याला, भरी हुई है जिनके अन्दर परिमल-मधु-सुरभित हाला, माँग-माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं झूम-झपक मद- झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला
उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला, बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला;
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए; देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला
दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला, ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला, कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला |
पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला, सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला, मुझे ठहरने का, हे मित्रो, कष्ट नहीं कुछ भी होता, मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला
सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला, सजधजकर, पर, साक़ी आता, बन ठनकर, पीनेवाला, शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से चिर-विधव...
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मुसल्मान औ’ हिन्दू हैं दो, एक, मगर, उनका प्याला, एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला; दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद-मन्दिर में जाते; वैर बढ़ाते मस्जिद-मन्दिर मेल कराती मधुशाला ’ 50
कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला, वैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला, एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले, देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला
आज करे परहेज़ जगत, पर कल पीनी होगी हाला, आज करे इन्कार जरात पर कल पीना होगा प्याला; होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर जहाँ अभी हैं मन्दिर-मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला | 53
यज्ञ-अग्नि-सी धधक रही है मधु की भट्ठी की ज्वाला, ऋषि-सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला, मुनि-कन्याओं-सी मधुघट ले फिरतीं साक़ीबालाएँ, किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला
व्यर्थ बने जाते हो हरिजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे; ठुकराते हरी-मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला
रंक-राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में, साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला
हो तो लेने दो ऐ साक़ी, दूर प्रथम संकोचों को; मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला
मैं ही साक़ी बनता, मैं ही पीनेवाला बनता हूँ, जहाँ कहीं मिल बैठे हम-तुम वहीं हो गई मधुशाला
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी, बंद लगी होने खुलते ही, मेरी जीवन-मधुशाला |
लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला, लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला लाख पटक तू हाथ-पाँव, पर इससे कब कुछ होने का, लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला
प्याले-सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला, पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला, क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी अन्यायी यमराजों के डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला |
यम आएगा साक़ी बनकर साथ लिए काली हाला, पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला; यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साक़ी, अंतिम प्याला है; पथिक, प्यार से पीना इसको, फिर न मिलेगी मधुशाला
नाम अगर पूछे कोई तो कहना बस पीनेवाला, काम ढालना और ढलाना सबको मदिरा का प्याला,
जाति, प्रिये, पूछे यदि कोई, कह देना दीवानों की, धर्म बताना, प्यालों की ले माला जपना मधुशाला |
ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला, पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला, और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला, किन्तु...
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उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला, उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर-मुख से हाला; प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में ! पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं, दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला !
साक़ी मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा; प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला !
पीनेवाले, साक़ी की मीठी बातों में मत आना; मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला |
कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला, कितने अरमानों को करके खाक बना पाया प्याला! पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा, कितने मन के महल ढहे, तब खड़ी हुई यह मधुशाला !