मैंने लिखना कब छोड़ा था? बहुत गर्मी के दिन थे तब। मुझे पसीना बहुत अच्छी तरह याद है। गर्दन के पीछे, रीढ़ की हड्डी से सरकता पसीना। मेरे हाथ में मेरी एकमात्र छपी हुई कहानियों की किताब थी। इस संकलन का नाम था ‘अनकहा’। ठीक इस वक्त से कुछ समय पहले मैंने अपना एक अधूरा उपन्यास और बहुत–सी बिखरी हुई कविताएँ जलाई थीं। गर्मी उसी की थी। पसीने की बूँदें, जो मेरे गर्दन से नीचे की तरफ सफर कर रही थीं, उनका संबंध उस आग से भी था जिनकी आँच अभी भी बाल्टी में धधक रही थी। मैंने ऐसा क्यों किया था? उस दिन मेरी कहानियों की किताब ‘अनकहा’ का पहला पृष्ठ मेरी गोद में खुला हुआ था और मैं उसमें लिखा हुआ वाक्य पढ़ रहा था, ‘माँ
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