एक दिन उसने मुझसे कहा कि तुम पहले कहानी का अंत पढ़ लिया करो। फिर तुम कम–से–कम कहानी का मज़ा तो ले पाओगे। मैं उसकी बात समझता था पर मैं उसके जैसा नहीं सोच सकता था। मैंने अपना पूरा जीवन भविष्य को देखते हुए जिया था पर वह कभी भी भविष्य के बारे में बात नहीं करती थी। हम दोनों के बीच सबसे बड़ा अंतर सपनों का ही था। उसे अधूरेपन की आदत थी और मैं अपने देखे हर सपने को उसकी नियति तक पहुँचाना चाहता था।