ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]
Rate it:
2%
Flag icon
जीवन बिठाकर बात करना चाहता है और मैं खड़े–खड़े चल देना।
9%
Flag icon
‘‘छोटी–छोटी व्यस्तताएँ आदमी को कॉकरोच बना देती हैं। फिर उसे लगता है कि वह कभी भी नहीं मरेगा।’’
15%
Flag icon
दरवाज़े! मैंने पता नहीं कितने घर बदले हैं। पता नहीं कितने लोगों के साथ मैं अलग–अलग जगह, अलग–अलग परिस्थितियों में रहा हूँ। इन सभी जगहों में मेरा सबसे खूबसूरत संबंध दरवाज़ों से रहा है। मुझे लगभग हर घर के (जिनमें मैं रहा हूँ) दरवाज़े रोमांच से भर देते थे। महज़ एक खट–खट पर।
17%
Flag icon
तभी निरंजन बोला– ‘‘तुम जानते हो मूँछें नहीं हैं! लोग कहते हैं कि मूँछें हैं। फिर मेरे जैसे कुछ और लोग तुम्हारी तरफ हो जाएँगे और तुम्हारे साथ कहेंगे कि मूँछें नहीं हैं जबकि लोग ‘मूँछें हैं’ का बयान देकर ‘तुम ठीक नहीं हो ’ सिद्ध कर देंगे और तुम यहीं पड़े रहोगे। इसमें मूँछें हैं कि नहीं हैं, हिंसा है। तुम देख लो।’’
26%
Flag icon
अब तुम अपना पर्स उठाओगी, एक बार मुझे देखकर मुस्कुराओगी और चली जाओगी। मैं काफी देर यहीं बैठा रहूँगा। इन्हीं बिखरी हुई तीलियों के साथ और सोचता रहूँगा उस घर के बारे में जो इन तीलियों से बन सकता था।
30%
Flag icon
जब मैं खुद को देखता हूँ तो मुझे अनंत ‘मैं’ दिखाई देते हैं। अनंत ‘मैं’ में मैं अनंत लोगों के जीवन का हिस्सा
31%
Flag icon
अगर हारकर भी हम इस खेल से बाहर नही हो सकते हैं तो जीतना तो एक भ्रम है। है ना?
33%
Flag icon
बड़े हो जाने के अपने दुःख थे। दुःख आदमी को बदल देता है। मैं हर कुछ समय में बदल रहा था पर मैं दुखी नहीं था। मैं लिख रहा था।
35%
Flag icon
‘‘मुझे लगता है कि Nothingness को हम कह नहीं सकते। लिख नहीं सकते। उसे हम कहीं किसी के कृतित्व में महसूस कर लेते हैं बस। और वह Nothingness रह जाती है उस कृतित्व में हमारे साथ। जैसे ख़ालीपन को भरने की मूर्ख कोशिश जब भी हम करते हैं, पर क्या खालीपन को कभी भी भरा जा सकता है? वह एक स्थिति है। है ना? हम उसे हमारी सारी व्यस्तता के बाद अपनी बगल में पड़ा हुआ पाते हैं हर बार। तुम्हारे लिखने में यह बहुत सहजता से है। तुम चीज़ों को, संबंधों को उसके ख़ालीपन में बहुत सुंदरता से देखते हो।’’
36%
Flag icon
इक़बाल भाई इसलिए कुछ पॉट बनाकर तोड़ देते हैं।’’ ‘‘और आप?’’ ‘‘मेरे भीतर इतनी क्षमता नहीं है। बिल्कुल नहीं।
36%
Flag icon
कुछ दिनों बाद मैंने अपनी कुछ कहानियाँ फाड़ दीं। एक वह भी जो मैंने आशा के बारे में लिखी थी। मुझे अच्छा लगा, अचानक कहानियाँ फाड़ते ही एक पूर्णता महसूस हुई।
42%
Flag icon
मैंने लिखना कब छोड़ा था? बहुत गर्मी के दिन थे तब। मुझे पसीना बहुत अच्छी तरह याद है। गर्दन के पीछे, रीढ़ की हड्डी से सरकता पसीना। मेरे हाथ में मेरी एकमात्र छपी हुई कहानियों की किताब थी। इस संकलन का नाम था ‘अनकहा’। ठीक इस वक्त से कुछ समय पहले मैंने अपना एक अधूरा उपन्यास और बहुत–सी बिखरी हुई कविताएँ जलाई थीं। गर्मी उसी की थी। पसीने की बूँदें, जो मेरे गर्दन से नीचे की तरफ सफर कर रही थीं, उनका संबंध उस आग से भी था जिनकी आँच अभी भी बाल्टी में धधक रही थी। मैंने ऐसा क्यों किया था? उस दिन मेरी कहानियों की किताब ‘अनकहा’ का पहला पृष्ठ मेरी गोद में खुला हुआ था और मैं उसमें लिखा हुआ वाक्य पढ़ रहा था, ‘माँ ...more
75%
Flag icon
बहुत पहले मैं एक लड़की को जानता था जो चिड़िया हो जाने का सपना देखा करती थी। हम अक्सर एक–दूसरे से अपने सपनों की बात करते थे। बात हम सीधी करते थे पर मुझे वह सारी बातें सपनों–सी लगती थीं। मैं उससे जब भी कहता कि मुझे मेरे सपने कभी याद नहीं रहते तो वह हँस देती थी। वह कहती थी कि यह कोई रटने वाली चीज़ थोड़ी है जिसे याद रखना होता है। उसे सब याद था।
76%
Flag icon
एक दिन उसने मुझसे कहा कि तुम पहले कहानी का अंत पढ़ लिया करो। फिर तुम कम–से–कम कहानी का मज़ा तो ले पाओगे। मैं उसकी बात समझता था पर मैं उसके जैसा नहीं सोच सकता था। मैंने अपना पूरा जीवन भविष्य को देखते हुए जिया था पर वह कभी भी भविष्य के बारे में बात नहीं करती थी। हम दोनों के बीच सबसे बड़ा अंतर सपनों का ही था। उसे अधूरेपन की आदत थी और मैं अपने देखे हर सपने को उसकी नियति तक पहुँचाना चाहता था।
82%
Flag icon
जीते जी खाली जगह का मिलना, दीवारें बनाना, दरवाज़े में ताला लगाना जैसे काम असंभव लगा। असंभव नहीं है, संभव है पर मेरे भीतर मछली जितना साहस नहीं है कि मैं उछलकर अपने पानी से बाहर आऊँ और घर के लिए किसी के डोंगे में तड़पता फिरूँ। न ही मुझमें चरवाहों जितनी शक्ति है कि जहाँ आग जलाऊँ वहीं घर हो जाए। मैंने घर के आगे समर्पण कर दिया और कमरे में अपना ताला लगाने लगा। वह नाराज़ रही फिर कहने लगी कि मैं अपना घर ख़ुद बनाऊँगी, मुझे एक ख़ाली जगह मिली है। कुछ सालों बाद वह अपनी खाली जगह पर चली गई। अपना घर बनाने।