मैं किचन के दरवाज़े के पास तक पहुँचा तो माँ के सुबकने की आवाज़ आने लगी। मैं भीतर किचन में गया तो देखा वह गैस की टंकी के पास बैठी रो रही थीं। मैं चुपचाप उनकी बगल में बैठ गया बिना उनको छुए हुए। मैंने पानी का गिलास उन्हें पकड़ा दिया था जिसे वह एक साँस में पूरा–का–पूरा गटक गई थीं पर उनका रोना फिर भी जारी था। आँसू नहीं टपक रहे थे पर उनका सुबकना जारी था। मैं समझ गया अगर मैं किचन में नहीं आता तो अब तक माँ अपना रोना बंद करके घर के कामों में मसरूफ हो चुकी होतीं। पर चूँकि अब उन्हें एक दर्शक मिल गया है सो, वह अब अपने रोने को ज़ाया नहीं होने देंगी।