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बिखरने के बाद का सिमटा हुआ–सा मैं ‘था’ से लेकर ‘हूँ’ तक पूरा–का–पूरा जी लेता हूँ ख़ुद को फिर से
माँ बहुत देर तक नीलकंठ को खोजती रहती थीं। सुबह उठते ही पेड़–पेड़ खोजती रहतीं। नीलकंठ दिखते ही उस पेड़ के चक्कर काटतीं। और बुदबुदाती जातीं, ‘‘नीलकंठ तुम नीले रहियो, मेरी बात राम से कहियो। राम सोए हो तो जगाकर कहियो’’।
मैंने कई बार सपना देखा है कि मैं पीपल का पेड़ हूँ और काया मेरी छाया के भीतर कहीं बैठी हुई है।
दिन में बाज़ार घूमते हुए अचानक जीवन दिखा। जीवन यायावर है। जीवन अपना घर बहुत पहले छोड़ चुका है, उसकी क़मीज़ से पसीने की बदबू आती है।
जीवन का सामना करने से मैं घबराता हूँ। जीवन की उम्र मेरी उम्र के आस–पास ही कहीं है। वह हमेशा अचानक मुझसे टकरा जाता है, कहता है कि चलो बैठकर बात करते हैं। मैं उसके साथ कभी नहीं बैठता हूँ। मैं उससे खड़े–खड़े बात करता हूँ।
बैठकर बात करने में ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है।
पिताजी मुझे चालाक बनाना चाहते थे और माँ नीलकंठ
मैं जीवन से भाग रहा था क्योंकि जीवन को काया के दोनों भाइयों ने मिलकर बहुत मारा था।
मैं दोनों ही जीवन से भाग रहा था। एक जो यायावर फटेहाल मेरा दोस्त था और दूसरा मेरा जीवन जो यायावर फटेहाल मेरा जीवन था।
समय मेरे पास उस वक्त नहीं था पर अब मैं जीवन के डर की वजह से घर में क़ैद हूँ, सो समय है। बहुत समय।
मैं किचन के दरवाज़े के पास तक पहुँचा तो माँ के सुबकने की आवाज़ आने लगी। मैं भीतर किचन में गया तो देखा वह गैस की टंकी के पास बैठी रो रही थीं। मैं चुपचाप उनकी बगल में बैठ गया बिना उनको छुए हुए। मैंने पानी का गिलास उन्हें पकड़ा दिया था जिसे वह एक साँस में पूरा–का–पूरा गटक गई थीं पर उनका रोना फिर भी जारी था। आँसू नहीं टपक रहे थे पर उनका सुबकना जारी था। मैं समझ गया अगर मैं किचन में नहीं आता तो अब तक माँ अपना रोना बंद करके घर के कामों में मसरूफ हो चुकी होतीं। पर चूँकि अब उन्हें एक दर्शक मिल गया है सो, वह अब अपने रोने को ज़ाया नहीं होने देंगी।
छोटी–छोटी व्यस्तताएँ आदमी को कॉकरोच बना देती हैं। फिर उसे लगता है कि वह कभी भी नहीं मरेगा।’’