Pawan Mishra

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तब मैं अपनी थाली में पड़ी हुई आधी रोटी को देख रहा था। एक अजीब–सा ख़्याल आया। आधा जीवन जी चुका हूँ, आधा पड़ा हुआ है। बिना सब्ज़ी, बिना दाल के अकेला। जिसे कोई खाना नहीं चाहता।
ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]
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