ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]
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यह बिलकुल वैसा ही है जैसे देर रात चाय बनाने की आदत में मैं हमेशा दो कप चाय बनाता हूँ, एक प्याली चाय जो अकेलापन देती है वह मैं पसंद नहीं करता। दो प्याली चाय का अकेलापन असल में अकेलेपन का महोत्सव मनाने जैसा है।
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यायावर
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खड़े–खड़े बात करने में एक चलतापन होता है जिसपर मैं हमेशा सहज बना
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रहता हूँ। बैठकर बात करने में ज़िम्मेदारी बढ़ जाती है। बैठकर बात लंबी चलती है। फिर खड़े होने की गलियाँ खोजनी पड़ती हैं।
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–बाप दोनों की अपेक्षाओं का बोझ उठाने के लिए हमेशा कंधे कमज़ोर पड़ जाते।
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किसी भी घटना का हिस्सा नहीं होना कितना मुश्किल है! उसे देखना भर हमें उसका हिस्सा बना देता है। उसे सुनना हमें उसका हिस्सा बना देता है। कैसे बिना किसी भी चीज़ का हिस्सा बने हम रह सकते
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काम के वक्त काम नहीं करने की आज़ादी बहुत बड़ी आज़ादी थी।
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पता नहीं
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कितनी सारी चीज़ें हैं जिनका हम कुछ भी नहीं कर सकते। बस मूक दर्शक बन देख सकते हैं। सब होता हुआ। सब घटता हुआ, धीरे–धीरे।