‘‘मुझे लगता है कि Nothingness को हम कह नहीं सकते। लिख नहीं सकते। उसे हम कहीं किसी के कृतित्व में महसूस कर लेते हैं बस। और वह Nothingness रह जाती है उस कृतित्व में हमारे साथ। जैसे ख़ालीपन को भरने की मूर्ख कोशिश जब भी हम करते हैं, पर क्या खालीपन को कभी भी भरा जा सकता है? वह एक स्थिति है। है ना? हम उसे हमारी सारी व्यस्तता के बाद अपनी बगल में पड़ा हुआ पाते हैं हर बार। तुम्हारे लिखने में यह बहुत सहजता से है। तुम चीज़ों को, संबंधों को उसके ख़ालीपन में बहुत सुंदरता से देखते हो।’’