सुबह, सूरज की रोशनी खिड़की से सीधे उनकी दीवार पर पड़ती थी, फिर धीरे–धीरे रेंगते हुए एक उजले प्रेत की तरह घर छोड़कर चली जाती। उन्होंने एक बार मुझसे कहा था कि क्या मैं इस रोशनी को अपने घर में रोक सकती हूँ? घर का दरवाज़ा खिड़की सब बंद करके इसे कैद कर लूँ? जैसे अपने घर में मैं क़ैद हूँ।

![ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]](https://i.gr-assets.com/images/S/compressed.photo.goodreads.com/books/1480605409l/33216152._SY475_.jpg)