आज लगता है कि पेलाग्या निलोवना से कहीं महान वह माँएँ हैं जो बिना किसी ‘आह’ के एक घर में काम करते हुए पूरी ज़िंदगी गुज़ार देती हैं। उनकी कोई कहानी हमने नहीं पढ़ी। उन्हें किसी ने कहीं भी दर्ज नहीं किया। वह अपने पति के जर्जर होने और बच्चों से आती खबरों के बीच कहीं अदृश्य–सी बूढ़ी होती रहीं। यह हमारी माँएँ हैं जिनका ज़िक्र कहीं नहीं है।