सुबह की राख में माँ को टटोलना, जो कहानी कल तक मुझे असह्य रूप से लंबी लग रही थी वह अभी इस राख में ख़त्म हो चुकी थी। इस राख में मैं माँ को ढूँढ़ रहा था। कभी वह मुझे अपने घर के बाहर खड़ी दिखतीं तो कभी लाल डलिया लिए मेरे लिए चॉक लाती हुईं, पर पकड़ में कुछ भी नहीं आता। सिर्फ़ राख।