ठीक तुम्हारे पीछे [Theek Tumhare Peechhe]
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एक अजीब–सा ख़्याल आया। आधा जीवन जी चुका हूँ, आधा पड़ा हुआ है। बिना सब्ज़ी, बिना दाल के अकेला। जिसे कोई खाना नहीं चाहता। वो शायद भीतर बेडरूम में जाकर रो रही होगी या अपनी थाली रखने के बाद किचन में ही खड़ी होगी। पता नहीं। अगर मैं थाली रखने किचन में गया और वो वहाँ मुझे खड़ी मिली तो बात उसे ही शुरू करनी पड़ेगी। चूँकि मैं किचन में थाली रखने आया हूँ और जा भी सकता हूँ। पर अगर वो भीतर बेडरूम में चली गई होगी तो बात मुझे ही शुरू करनी पड़ेगी क्योंकि उसके घेरे में प्रवेश करने के बाद मैं बिना बात के नहीं जा सकता हूँ। ये कुछ अजीब से नियम हैं, जिनका गणित पूरे समय मेरे दिमाग़ में गुणा–भाग कर रहा होता है।