चन्द्रगुप्त
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कहीं आभीर और कहीं ब्राह्मण, राजा बन बैठे थे।
10%
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निर्माण
Rao Kuldeep Singh
निर्वाण
10%
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निर्माण
Rao Kuldeep Singh
निर्वाण
10%
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ई०
Rao Kuldeep Singh
ई पूर्व
48%
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स्वच्छ हृदय भीरु कायरों की-सी वंचक शिष्टता नहीं जानता।
49%
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चाणक्य सिद्धि देखता है साधन चाहे कैसे ही हों।
51%
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युद्ध में जय या मृत्यु—दो में से एक होनी चाहिए।
56%
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कोमल शय्या पर लेटे रहने की प्रत्याशा में स्वतन्त्रता का भी विसर्जन करना पड़ता है, यही उन विलासपूर्ण राजभवनों का प्रलोभन है।
66%
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शत्रु की उचित प्रशंसा करना मनुष्य का धर्म है।
70%
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अवसर पर एक क्षण का विलम्ब असफलता का प्रवर्त्तक हो जाता है।
70%
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वह सामने कुसुमपुर है, जहाँ मेरे जीवन का प्रभात हुआ था। मेरे उस सरल हृदय में उत्कट इच्छा थी कोई भी सुन्दर मन मेरा साथी हो। प्रत्येक नवीन परिचय में उत्सुकता थी और उसके लिए मन में सर्वस्व लुटा दने की सन्नद्धता थी। परन्तु संसार—कठोर संसार ने सिखा दिया है कि तुम्हें परखना होगा। समझदारी आने पर यौवन चला जाता है—जब तक माला गूँथी जाती है, तब तक फूल कुम्हला जाते हैं। जिससे मिलने के सम्भार की इतनी धूम-धाम सजावट, बनावट होती है, उसके आने तक मनुष्य-हृदय को सुन्दर और उपयुक्त नहीं बनाये रह सकता। मनुष्य की चञ्चल स्थिति कब तक उस श्यामल कोमल हृदय को मरुभूमि बना देती है। यहाँ तो विषमता है। मैं अविश्वास, कूट-चक्र ...more
81%
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भला लगने के लिए मैं कोई काम नहीं करता कात्यायन! परिणाम में भलाई ही मेरे कामों की कसौटी है।
85%
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अधिक हर्ष, अधिक उन्नति के बाद ही तो अधिक दुख और पतन की बारी आती है!
87%
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मृग
Rao Kuldeep Singh
श्रंग
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स्वतन्त्रता के युद्ध में सैनिक और सेनापति का भेद नहीं। जिसकी खड्ग-प्रभा में विजय का आलोक चमकेगा, वही वरेण्य है। उसी की पूजा होगी।
88%
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मनुष्य साधारण धर्मा पशु है, विचारशील होने से मनुष्य होता है और नि:स्वार्थ कर्म करने से वही देवता भी हो सकता है।
88%
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अपने से बार-बार सहायता करने के लिए कहने में, मानव-स्वभाव विद्रोह करने लगता है। यह सौहार्द और विश्वास का सुन्दर अभिमान है। उस समय मन चाहे अभिनय करता हो संघर्ष से बचने का; किन्तु जीवन अपना संग्राम अन्ध होकर लड़ता है। कहता है—अपने को बचाऊँगा नहीं, जो मेरे मित्र हों, आवे और अपना प्रमाण दें।
92%
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कार्नेलिया : अच्छा, अपनी परीक्षा दो, बताओ, तुम विवाहिता स्त्रियों को क्या समझती हो? सुवासिनी : धनियों के प्रमोद का कटा-छँटा हुआ शोभा-वृक्ष। कोई डाली उल्लास से आगे बढ़ी, कुतर दी .गयी। माली के मन से सँवरे हुए गोल-मटोल खड़े रही!