गबन
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Read between February 4 - February 7, 2019
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स्त्री का सप्रेम आग्रह पुरूष से क्या नहीं करा सकता।
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स्त्री के नजरों में तुच्छ बनना कौन चाहता है।
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देने वाले का ह्रदय देखना चाहिए।
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द्वेष तर्क और प्रमाण नहीं सुनता।
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भेख और भीख में सनातन से मित्रता है।
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माल की तौल और परख में दृढ़ता से नियमों का पालन करके वह धन और कीर्ति, दोनों ही कमा सकता है।
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चतुर व्यापारी की भांति वह जो कुछ खर्च करता था, वह केवल कमाने के लिए।
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कर्ज़ से बडा पाप दूसरा नहीं।
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न इससे बडी विपत्ति दूसरी है।
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जिस देश के लोग जितने ही मूर्ख होंगे, वहां जेवरों का प्रचार भी उतना ही अधिक होगा।
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मित्रों से अपनी व्यथा कहते समय हम बहुधा अपना दु:ख बढ़ाकर कहते हैं। जो बातें परदे की समझी जाती हैं, उनकी चर्चा करने से एक तरह का अपनापन जाहिर होता है।
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नया रंगरूट जो पहले बंदूक की आवाज़ से चौंक पड़ता है, आगे चलकर गोलियों की वर्षा में भी नहीं घबडाता।
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बहुधा हमारे जीवन पर उन्हीं के हाथों कठोरतम आघात होता है, जो हमारे सच्चे हितैषी होते हैं।
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जीवन में ऐसे अवसर भी आते हैं, जब निराशा में भी हमें आशा होती है।
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विजय बहिर्मुखी होती है, पराजय अन्तर्मुखी।
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मेरी हालत तुम जानते हो हां, किसी का कर्ज़ नहीं रखता। न किसी को कर्ज देता हूं, न किसी से लेता हूं।
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बिना विश्वास के प्रेम हो ही कैसे सकता है? जिससे तुम अपनी बुरी-से-बुरी बात न कह सको, उससे तुम प्रेम नहीं कर सकते।
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आमदनी से ज्यादा ख़र्च करने का दंड एक दिन भोगना पड़ेगा। अब
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विपत्ति में हमारा मन अंतर्मुखी हो जाता है।
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जो पुरूष अपनी स्त्री से कोई परदा रखता है, मैं समझती हूं, वह उससे प्रेम नहीं करता।
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अन्य प्राणियों की तरह मस्तिष्क भी कार्य में तत्पर न होकर बहाने खोजता है।
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हाथ में चार पैसे होंगे, तो पराए भी अपने हो जाएंगे,
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रतन ने दृढ़ता से कहा, ‘मुझे उस दशा में भी तुमसे मांगने में संकोच न होगा। मैत्री परिस्थितियों का विचार नहीं करती। अगर यह विचार बना रहे, तो समझ लो मैत्री नहीं है।
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जीवन एक दीर्घ पश्चाताप के सिवा और क्या है!
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प्रेम ह्रदय की वस्तु है, रूपये की नहीं।
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इस समय उसका दुर्बल मन कोई आश्रय, कोई सहारा, कोई बल ढूंढ रहा था और आशीर्वाद और प्रार्थना के सिवा वह बल उसे कौन प्रदान करता। यही बल और शांति का वह अक्षय भंडार है जो किसी को निराश नहीं करता, जो सबकी बांह पकड़ता है, सबका बेडापार लगाता है।
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आदमी में स्वार्थ की मात्रा कितनी अधिक होती है।
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यौवन को प्रेम की इतनी क्षुधा नहीं होती, जितनी आत्म-प्रदर्शन की।
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हर एक अपना छोटा-सा मिट्टी का घरौंदा बनाए बैठा है। देश बह जाए, उसे परवा नहीं। उसका घरौंदा बच रहे! उसके स्वार्थ में बाधा न पड़े।
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लज्जा ने सदैव वीरों को परास्त किया है। जो काल से भी नहीं डरते, वे भी लज्जा के सामने खड़े होने की हिम्मत नहीं करते।
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अगर आज हम और तुम किसी वजह से रूठ जायं, तो क्या कल तुम मुझे मुसीबत में देखकर मेरे साथ ज़रा भी हमदर्दी न करोगी? क्या मुझे भूखों मरते देखकर मेरे साथ उससे कुछ भी ज्यादा सलूक न करोगी, जो आदमी कुत्तों के साथ करता है? मुझे तो ऐसी आशा नहीं। जहां एक बार प्रेम ने वास किया हो, वहां उदासीनता और विराग चाहे पैदा हो जाय, हिंसा का भाव नहीं पैदा हो सकता
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प्रेम अपने उच्चतर स्थान पर पहुंचकर देवत्व से मिल जाता है।
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विष में मुझे सुधा प्राप्त हो गई।
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वह यह भूल गए कि विलास-वृत्ति संतोष करना नहीं जानती।