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कुछ लोग परीक्षा में दृढ़ रहते हैं और कुछ लोग इसकी हल्की आंच भी नहीं सक सकते।
निर्दय काल की कठोर से अधर्म मार्ग पर उतर आया है, तो उसके धर्म की रक्षा करना हमारा कर्तव्य-धर्म है।
उनकी आत्मा दौड़कर उस युवक के दामन में चिमट जाने के लिए अधीर हो गयी; वह दार्शनिक न था, जो सत्य में शंका करता है।
महत्वाकांक्षा आखों पर परदा डाल देती है।
कैसी ही अच्छी वस्तु क्यों न हो, जब तक हमको उसकी आवश्यकता नहीं होती तब तक हमारी दृष्टि में उसका गौरव नहीं होता। हरी