बेटी का धन
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Read between March 16 - March 31, 2025
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साधुगण जिस प्रेम से भोजन करते थे, उससे यह शंका होती थी कि स्वादपूर्ण वस्तुओं में कहीं भक्ति-भजन से भी अधिक सुख तो नहीं है।
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मैंने पतिव्रत नहीं लिया था। कम से कम संसार मुझे ऐसा समझता था। मैं अपनी दृष्टि में अब भी वहीं हूं, किंतु संसार की दृष्टि में कुछ और हो गयी हूं।
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कुछ देर तक वह अचेत बैठा रोता रहा। फिर उठा और उसने तलवार उठा कर जोर से अपनी छाती में चुभा ली। फिर रक्त की फुहार निकली। दोनों धाराएं मिल गयीं और उनमें कोई भेद न रहा।
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काफिर वह नहीं, जो मिट्टी या पत्थर के टुकड़े में खुदा का नूर देखता है,जो नदियों और पहाड़ों में,दरख्तों पर झाड़ियों में, खुदा का जलवा पाता हो। वह हमसे और तुमसे ज्यादा खुदापरस्त हैं, जो मस्जिद में खुदा को बन्द समझते हैं।
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उसका छोटा-सा संसार जिसे उसने अपनी कल्पनाओं के हृदय में रचा था, स्वप्न की भांति अनन्त में विलीन हो गया था। जिस प्रकाश को सामने देखकर वह जीवन की अंधेरी रात में भी हृदय में आशाओं की संपत्ति लिए जी रही थी, वह बुझ गया और संपत्ति लुट गयी।
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जो कभी रो नहीं सकता वह प्रेम नहीं कर सकता। रुदन और प्रेम, दोनों एक ही स्रोत से निकलते हैं।