More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
दुःखी हृदय दुखती हुई आंख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।
सांस का भरोसा ही क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषाओं के कितने विशाल भवन बनाते हैं! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दूर की हैं, मानो हम अमर हैं।
संसार के सारे नाते स्नेह के नाते हैं। जहां स्नेह नहीं, वहां कुछ नहीं।
मन। तेरी गति कितनी विचित्र है, कितनी रहस्य से भरी हुई, कितनी दुर्भेद्य। तू कितनी जल्द रंग बदलता है? इस कला में तू निपुण है।
बड़े-बड़े महान संकल्प आवेश में ही जन्म लेते हैं।
मानव जीवन! तू इतना क्षणभंगुर है, पर तेरी कल्पनाएं कितनी दीर्घाल!
दरिद्र प्राणी उस धनी से कहीं सुखी है, जिसे उसका धन सांप बनकर काटने दौड़े। उपवास कर लेना आसान है, विषैला भोजन करन उससे कहीं मुंश्किल