निर्मला
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Read between April 12 - April 17, 2024
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सांस का भरोसा ही क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषाओं के कितने विशाल भवन बनाते हैं! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दूर की हैं, मानो हम अमर हैं।
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Eshan Bhargava
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Eshan Bhargava
You are reading some of the finest words ever written, bhai. Brilliant!
Bhanu Kothari
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Bhanu Kothari
I know bhai.. discovered it too late! 🙂
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मातृ-प्रेम में कठोरता होती थी, लेकिन मृदुलता से मिली हुई। इस प्रेम में करूणा थी, पर वह कठोरता न थी, जो आत्मीयता का गुप्त संदेश है। स्वस्थ अंग की पारवाह कौन करता है? लेकिन वही अंग जब किसी वेदना से टपकने लगता है, तो उसे ठेस और घक्के से बचाने का यत्न किया जाता है।
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युवावस्था में एकान्तवास चरित्र के लिए बहुत ही हानिकारक है।