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हम लड़कियां हैं, हमारा घर कहीं नहीं होता।
सांस का भरोसा ही क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषाओं के कितने विशाल भवन बनाते हैं! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दूर की हैं, मानो हम अमर हैं।
मन। तेरी गति कितनी विचित्र है, कितनी रहस्य से भरी हुई, कितनी दुर्भेद्य। तू कितनी जल्द रंग बदलता है? इस कला में तू निपुण है। आतिशबाजी की चर्खी को भी रंग बदलते कुछ देरी लगती है, पर तुझे रंग बदलने में उसका लक्षांश समय भी नहीं लगता। जहां अभी वात्सल्य था, वहां फिर संदेह ने आसन जमा लिया।
धन मानव जीवन में अगर सर्वप्रधान वस्त नहीं, तो वह उसके बहुत निकट की वस्तु अवश्य है।
माता का हृदय प्रेम में इतना अनुरक्त रहता है कि भविष्य की चिन्त्ज्ञ और बाधाएं उसे जरा भी भयभीत नहीं करतीं।
मानव जीवन! तू इतना क्षणभंगुर है, पर तेरी कल्पनाएं कितनी दीर्घाल!
आदमी हारता है, तो अपने लड़कों ही से।