More on this book
Community
Kindle Notes & Highlights
आकाश की और तृषित नेत्रों से ताक रही थी
दुःखी हृदय दुखती हुई आंख है, जिसमें हवा से भी पीड़ा होती है।
जिसे अपने घर सूखी रोटियां भी मयस्सर नहीं वह भी बारात में जाकर तानाशाह बन बैठता है।
जीवन, तुमसे ज्यादा असार भी दुनिया में कोई वस्तु है? क्या वह उस दीपक की भांति ही क्षणभंगुर नहीं है, जो हवा के एक झोंके से बुझ जाता है! पानी के एक बुलबुले को देखते हो, लेकिन उसे टूटते भी कुछ देर लगती है, जीवन में उतना सार भी नहीं। सांस का भरोसा ही क्या और इसी नश्वरता पर हम अभिलाषाओं के कितने विशाल भवन बनाते हैं! नहीं जानते, नीचे जानेवाली सांस ऊपर आयेगी या नहीं, पर सोचते इतनी दूर की हैं, मानो हम अमर हैं।
जब कोई बात हमारी आशा के विरुद्ध होती है, तभी दुख होता है।
धन मानव जीवन में अगर सर्वप्रधान वस्त नहीं, तो वह उसके बहुत निकट की वस्तु अवश्य है।
जीवन! तू इतना क्षणभंगुर है, पर तेरी कल्पनाएं कितनी दीर्घाल!
मगर तिनके का सहारा पाकर कोई तट पर पहुंचा है?
प्रेम में असीम विश्वास है, असीम धैर्य है और असीम बल है।