Mansarovar - Part 1 (Hindi)
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सबल की शिकायतें सब सुनते हैं, निर्बल की फरियाद भी कोई नहीं सुनता!
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जिसे अपना समझो, व अपना है: जिसे गैर समझो, वह गैर है।
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आशा तो बड़ी चीज है, और फिर बच्चों की आशा! उनकी कल्पना तो राई का पर्वत बना लेती हे।
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रत्नजटित मखमली म्यान में जैसे तेज तलवार छिपी रहती है, जल के कोमल प्रवाह में जैसे असीम शक्ति छिपी रहती है, वैसे ही रमणी का कोमल हृदय साहस और धैर्य को अपनी गोद में छिपाए रहता है। क्रोध जैसे तलवार को बाहर खींच लेता है, विज्ञान जैसे जल-शक्ति का उदघाटन कर लेता है, वैसे ही प्रेम रमणी के साहस और धैर्य को प्रदीप्त कर देता है।
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उसके हृदय न था, भाव न थे, केवल मस्तिष्क था। मस्तिष्क में दर्द कहॉ? वहॉ तो तर्क हैं, मनसूबे हैं।
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सरकार की पहली नीति यह है कि वह दिन-दिन अधिक संगठित और दृढ़ हों। इसके लिए स्वाधीनता के भावों का दमन करना जरूरी है;
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अगर ठोकर खाकर आत्मा स्वाधीन रह सकती है, तो मैं कहूँगी, ठोकर खाना अच्छा है।
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महत्त्वाकांक्षा आँखों पर परदा डाल देती है।
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हरि-इच्छा बेकसों का अंतिम अवलम्ब है।
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स्त्री पुरुष में विवाह की पहली शर्त यह है कि दोनों सोलहों आने एक-दुसरे के हो जाएं। ऐसे पुरूष तो कम हैं, जो स्त्री को जौ-भर विचलित होते देखकर शांत रह सकें, पर ऐसी स्त्रियां बहुत हैं, जो पति को स्वच्छंद समझती हैं।
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स्त्री के जीवन में प्यार न मिले तो उसका अंत हो जाना ही अच्छा।
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फल काँटेदार वृक्ष से भी मिलें तो क्या उन्हें छोड़ दिया जाता है।