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अभी बिस्तर से उठने की नौबत नहीं आयी कि कानों में विचित्र आवाजें आने लगीं। काबुल के मीनार के निर्माण के समय भी ऐसी निरर्थक आवाजें न आयी होंगी। यह खोंचेवालों की शब्द-क्रीड़ा हैं। उचित तो यह था, यह खोंचेवाले ढोल- मँजीरे के साथ लोगों को अपनी चीजों की ओर आकर्षित करते; मगर इन औंधी अक्लवालों को यह कहाँ सूझती हैं। ऐसे पैशाचिक स्वर निकालते हैं कि सुननेवालों के रोएँ खड़े हो जाते हैं।