प्रेम जब श्रद्धा के साथ आता हैं, तब वह ऐसा मेहमान हो जाता हैं, जो उपहार लेकर आया हो। युवकों के लिए प्रेम खर्चीली वस्तु हैं लेकिन महात्माओं या महीत्मापन के समीप पहुँचे हुए लोगों का प्रेम-उलटे और कुछ ले आता हैं। युवक जो रंग बहुमूल्य उपहारों से जमाता हैं, ये महात्मा या अर्द्ध- महात्मा लोग केवल आशीर्वाद से जमा लेते हैं।