उन दिनों माफ़िया के ख़िलाफ़ लिखने का साहस करने वाले पत्रकारों की तादाद ज़्यादा नहीं थी। बुज़ुर्ग क्राइम रिपोर्टर एम. पी. अय्यर अपने घोर आदर्शवाद से प्रेरित होकर माफ़िया के बारे में लगातार लिख रहे थे और उनकी ज़िन्दगियों को मुश्किल में डाले हुए थे। प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया (पीटीआई) में उनके लेख अपराधी गुटों के तमाम वर्गों का भण्डाफोड़ करते रहते थे। अय्यर ने किसी को भी नहीं बख़्शा था, चाहे वे मस्तान, करीम लाला और यूसुफ़ पटेल हों, या उस दौर के हुकूमत चलाने वाले दूसरे डॉन हों। अन्ततः इन डॉनों के गुर्गों ने मिलकर इस साहसी रिपोर्टर की ज़ुबान बन्द करने का फ़ैसला कर लिया।