Dharmendra Chouhan

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बिना शर्त समर्पण न करने के अपने फ़ैसले को उसने उस वक़्त उचित ही पाया जब उसने याकूब मेमन की दशा देखी, जो धमाकों के कई सारे आरोपियों के ख़िलाफ़ टनों सबूत लेकर भारत लौटा था। लेकिन उस पर किसी सड़कछाप ठग की तरह मुकदमा चलाया गया था और मौत की सज़ा सुनाई गई थी। उस आदमी के प्रति कोई दया नहीं दिखाई गई जिसने स्वेच्छा से सूचनाएँ मुहैया कराने की तत्परता दिखाई थी और आत्मसर्पण के लिए राज़ी हुआ था।
Dongri Se Dubai Tak (Dongri to Dubai: Six Decades of the Mumbai Mafia) (Hindi)
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