बाद में मस्ताकर ने मन्या के ख़िलाफ़ गवाही दी, और उसके इस साहस की वजह से मन्या की हिटलिस्ट में उसकी जगह सुरक्षित हो गई। लेकिन इसके पहले कि वह मस्ताकर तक पहुँच पाता, मन्या मारा गया। पाटिल और मस्ताकर पर किए इन हमलों का महत्व इस बात में है कि मन्या की गिरफ़्तारी के पहले तक ये दोनों उसके दोस्त हुआ करते थे। मन्या पाटिल के इतने क़रीब था कि उसने पाटिल के घर पर कई बार खाना खाया था। दरअसल, ‘ना’ एक ऐसी चीज़ थी जिसे मन्या किसी से भी सुनने को तैयार नहीं था, फिर वह कोई भी क्यों न हो; जो भी कोई ‘ना’ कहता था मन्या अपने आप उसका दुश्मन बन जाता था ।