लेकिन भारत अपने इस रुतबे को भुनाने में नाकामयाब रहा। 1993 के धमाकों के बाद भारत के प्रति पूरी दुनिया में सहानुभूति की एक लहर थी। अगर भारत चाहता, तो वह इस मौक़े का फ़ायदा उठाकर पाकिस्तान को झुकने पर मजबूर कर सकता था और दाऊद को मुल्क में वापस ला सकता था। पर यह अवसर खो दिया गया।