मसलन, बम्बई माफ़िया की हुकूमत का उसूल था कि दो गुटों के बीच दुश्मनी में चाहे कितनी ही कड़वाहट क्यों न हो, परिवार के लोगों का ख़ून कभी नहीं बहाया जाना चाहिए। परिवार के जो सदस्य माफिया गिरोह के सदस्य होते थे, उन्हें अलबत्ता यह अभयदान प्राप्त नहीं था, लेकिन माफिया उन लोगों को कभी निशाना नहीं बनाता था जो संगठित अपराध के स्याह कारोबार में मुब्तिला नहीं होते थे।