एक ज़माना था जब आज़ादी के आन्दोलन की रहनुमाई करने वाले भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के दिग्गजों ने काँग्रेस हाउस को अपनी गतिविधियों का केन्द्र बनाया था। लेकिन वे गौरवशाली दिन हुआ करते थे। सत्तर का दशक शुरू होते-होते यह एक वेश्यालय बन चुका था जहाँ नाचगाना करने वाली वेश्याएँ, जिन्हें स्थानीय ज़ुबान में मुजरेवालियाँ कहा जाता था, पाकीज़ा के अन्दाज़ में अपने ग्राहकों का मनोरंजन किया करती थीं।