गोदान
Rate it:
Kindle Notes & Highlights
3%
Flag icon
लेकिन जिसकी आत्मा में बल नहीं, अभिमान नहीं, वह और चाहे, कुछ हो आदमी नहीं है।
8%
Flag icon
वैवाहिक जीवन के प्रभात में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है अरि हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्याह्र का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बगूले उठते हैं और पृथ्वी काँपने लगती है। लालसा का सुनहरा आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है। उसके बाद विश्राममय संध्या आती है, शीतल और शान्त, जब हम थके हुए पथिकों की भाँति दिन-भर की यात्रा का वृत्तान्त कहते और सुनते हैं तटस्थ भाव से, मानों हम किसी ऊँचे शिखर पर जा बैठे हैं, जहाँ नीचे का जन-रब हम तक नहीं पहुँचता।
8%
Flag icon
जीत में सब कुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही बस्तु है।
12%
Flag icon
वह केवल जुगनू की चमक नहीं, दीपक का स्थायी प्रकाश चाहती थी।
13%
Flag icon
प्रतिभा तो गरीबी ही में चमकती है दीपक की भाँति, जो अंधेरे ही में अपना प्रकाश दिखाता है।
19%
Flag icon
राजनीति के सामने न्याय को कौन पूछता
21%
Flag icon
मुझसे कोई स्त्री प्रेम का स्वाँग नहीं कर सकती। मैं उसके अन्तस्तल तक पहुँच जाऊँगा। फिर उससे अरुचि हो जायगी।
24%
Flag icon
जो रमणी से प्रेम नहीं कर सकता, उसके देश-प्रेम में मुझे विश्वास नहीं।
25%
Flag icon
न भूत का पछतावा था, न भविष्य की चिन्ता।
25%
Flag icon
जिसे हम डेमॉक्रेसी कहते हैं, वह व्यवहार में बड़े-बड़े व्यापारियों और ज़मीदारों का राज्य है, और कुछ नहीं।
28%
Flag icon
कर्ज वह मेहमान है, जो एक बार आकर जाने का नाम नहीं लेता।
42%
Flag icon
उसमें वह क्रोध था, जो अपने को खा जाना चाहता है, जिसमें हिंसा नहीं, आत्मसमर्पण है।
44%
Flag icon
अन्धी नकल तो मानसिक दुर्बलता का ही लक्षण है!
54%
Flag icon
गोविन्दी निराशा की उस दशा को पहुँच गई थी, जब आदमी को सत्य और धर्म में भी सन्देह होने लगता है;
55%
Flag icon
कृपण लोगों में उत्सवों पर दिल खोलकर खर्च करने की जो एक प्रवृत्ति होती है, वह उसमें भी सजग हो गई।
63%
Flag icon
उसका मातृत्व उस घर के समान हो रहा था, जिसमें आग लग गई हो और सब कुछ भस्म हो गया हो। बैठकर रोने के लिए भी स्थान न बचा हो।
66%
Flag icon
धन ने आज तक नारी के हृदय पर विजय नहीं पाई और न कभी पाएगा।
73%
Flag icon
घमण्डी आदमी प्राय: शक्की हुआ करता है। और जब मन में चोर हो, तो शक्कीपन और भी बद जाता है।
76%
Flag icon
उसके शोक में भाग लेकर, उसके अन्तर्जीवन में पैठकर, गोबर उसके समीप जा सकता उसके जीवन का अंग बन सकता था; पर वह उसके बाह्य जीवन के सूखे तट पर आकर ही प्यासा लौट जाता था।
78%
Flag icon
और मन स्वस्थ हो, तो देह कैसे अस्वस्थ रहे! उस एक महीने में जैसे उसका कायाकल्प हो गया हो।
80%
Flag icon
दौलत से आदमी को जो सम्मान मिलता है, वह उसका सम्मान नहीं, उसकी दौलत का सम्मान है।
81%
Flag icon
हमारी सारी आत्मिक और बौद्धिक और शारीरिक शक्तियों के सामंजस्य का नाम धन है।
81%
Flag icon
नेकी न करना बदनामी की बात नहीं। अपनी इच्छा नहीं है। इसके लिए कोई हमें बुरा नहीं कह सकता। मगर जब हम नेकी करके उसका एहसान जताने लगते हैं, तो वही जिसके साथ हमने नेकी की थी, हमारा शत्रु हो जाता है, और हमारे एहसान को मिटा देना चाहता है। वही नेकी अगर करने बालों के दिल में रहे, तो नेकी है, बाहर निकल आये तो बदी है।
88%
Flag icon
हम जिनके लिए त्याग करते हैं, उनसे किसी बदले की आशा न रखकर भी उनके मन पर शासन करना चाहते हैं, चाहे वह शासन उन्हीं के हित के लिए हो, यद्यपि उस हित को हम इतना अपना लेते हैं कि वह उनका न होकर हमारा हो जाता है। त्याग की मात्रा जितनी ही ज्यादा होती है, यह शासन भावना भी उतनी ही प्रबल होती है और जब सहसा हमें विद्रोह का सामना करना पड़ता है, तो हम क्षुब्घ हो उठते हैं, और वह त्याग जैसे प्रतिहिंसा का रूप ले लेता है।
90%
Flag icon
बुढ़ापे में कौन अपनी जवानी की भूलों पर दुखी नहीं होता?
92%
Flag icon
तुम किस तर्क से इस दान-प्रथा का समर्थन कर सकते हो। मनुष्य जाति को इस प्रथा ने जितना आलसी और मुफ्तखोर बनाया है और उसके आत्मगौरव पर जैसा आघात किया है, उतना अन्याय ने भी न किया होगा; बल्कि मेरे खयाल में अन्याय ने मनुष्य-जाति में विद्रोह की भावना उत्पन्न करके समाज का बड़ा उपकार किया है।
92%
Flag icon
यह मोह ही विनाश की जड़ है।
95%
Flag icon
परदा होता है हवा के लिए। आँधी में परदे उठाके रख दिये जाते हैं कि आँधी के साथ उड़ न जायँ।
जो कुछ अपने से नहीं बन पड़ा, उसी के दुःख का नाम तो मोह है। पाले हुए कर्त्तव्य और निपटाए हुए कामों का क्या मोह! मोह तो उन अनाथों को छोड़ जाने में है, जिनके साथ हम अपना कर्त्तव्य न निभा सके; उन अधूरे मंसूबों में है, जिन्हें हम न पूरा कर सके।