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काना कहने से काने को जो दुःख होता है, वह क्या दो आँखोंवाले आदमी को हो सकता है?
दरिद्रता में जो एक प्रकार की अदूरदर्शिता होती है, वह निर्लज्जता के तकाजे, गाली और मार से भी भयभीत नहीं होती,
सबसे अपना दुःख क्यों रोऊँ। बाँटता कोई नहीं, हँसते सब हैं।
होरी किसान था और किसी के जलते हुए घर में हाथ सेंकना उसने सीखा ही न था।
जीतकर आप अपनी धोखेबाजियों की डींग मार सकते हैं, जीत से सबकुछ माफ है। हार की लज्जा तो पी जाने की ही वस्तु है।
‘आश्चर्य अज्ञान का दूसरा नाम है।’