गोदान
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Kindle Notes & Highlights
Read between December 21 - December 29, 2021
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होरी ने फटी हुई मिरजई को बड़ी सावधानी से तह करके खाट पर रखते हुए कहा—‘तो क्या तू समझती है, मैं बूढ़ा हो गया? अभी तो चालीस भी नहीं हुए। मरद साठे पर पाठे होते हैं।’
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मेरे जेहन में औरत वफा और त्याग की मूर्ति है, जो अपनी बेजानी से, अपनी कुरबानी से, अपने को बिल्कुल मिटाकर पति की आत्मा का एक अंश बन जाती है। देह पुरुष की रहती है, पर आत्मा स्त्री की होती है। आप कहेंगे, मरद अपने को क्यों नहीं मिटाता? औरत ही से क्यों इसकी आशा करता है? मरद में वह सामर्थ्य ही नहीं है। वह अपने को मिटाएगा तो शून्य हो जाएगा। वह किसी खोह में जा बैठेगा और सर्वात्मा में मिल जाने का स्वप्न देखेगा। वह तेजप्रधान जीव है और अहंकार में यह समझकर कि वह ज्ञान का पुतला है, सीधा ईश्वर में लीन होने की कल्पना किया करता है। स्त्री पृथ्वी की भाँति धैर्यवान् है, शांति-संपन्न है, सहिष्णु है। पुरुष में ...more
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शिष्टता उसके लिए दुनिया को ठगने का एक साधन थी, मन का संस्कार नहीं।