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January 26 - March 29, 2016
अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राहें भूलकर भटकने लगते हैं, तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ-प्रदर्शक बन जाता है।
पत्र-संपादक अपनी शांति कुटी में बैठा हुआ कितनी धृष्टता और स्वतंत्रता के साथ अपनी प्रबल लेखनी से मंत्रिमंडल पर आक्रमण करता है। परंतु ऐसे अवसर आते हैं, जब वह स्वयं मंत्रिमंडल में सम्मिलित होता है। मंडल के भवन में पग धरते ही उसकी लेखनी कितनी मर्मज्ञ, कितनी विचारशील, न्यायपरायण हो जाती है। इसको उत्तरदायित्व का ज्ञान कहा जाता है। नवयुवक युवावस्था में कितना उद्दंड रहता है।
"मैके में तो चाहे घी की नदी बहती हो!" स्त्री गालियाँ सह लेती है, मार भी सह लेती है, पर मैके की निंदा उससे नहीं सही जाती। आनन्दी मुँह फेर कर बोली, "हाथी मरा भी, तो नौ लाख का। वहाँ इतना घी नित्य नाई-कहार खा जाते हैं।"
गाँव में कुछ ऐसे कुटिल मनुष्य भी थे, जो इस कुल की नीतिपूर्ण गति पर मन ही मन जलते थे। वह कहा करते थे, ‘श्रीकण्ठ अपने बाप से दबता है, इसलिए वह दब्बू है। उसने विद्या पढ़ी, इसलिए वह किताबों का कीड़ा है। बेनीमाधव सिंह उसकी सलाह के बिना कोई काम नहीं करते, यह उनकी मूर्खता है।’ इन महानुभाओं की शुभकामनाएँ आज पूरी होती दिखाई दीं।
"माँ-बाप जन्म के साथी होते हैं, किसी के कर्म के साथी नहीं होते।"