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May 13, 2019 - February 1, 2024
चिपका हुआ टिकट अब पानी से नहीं छूट रहा है।
तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।
घर में चाहे अंधेरा हो, मंदिर में अवश्य दिया जलाएँगे।
गाँव के काने और लँगड़े आदमी उसकी सूरत से चिढ़ते थे और गालियाँ खाने में तो शायद ससुराल में आने वाले दामाद को भी इतना आनंद न आता
हमें मनुष्य के न्याय का डर न हो, परंतु ईश्वर के न्याय का डर प्रत्येक मनुष्य के मन में स्वभाव से रहता
गोबर का उपला जब जलकर ख़ाक हो जाता है, तब साधु-संत उसे माथे पर चढ़ाते हैं। पत्थर का ढेला आग में जलकर आग से अधिक तीखा और मारक हो जाता है।
वही तलवार, जो केले को नहीं काट सकती, सान पर चढ़कर लोहे को काट देती है। मानव-जीवन में लाग बड़े महत्त्व की वस्तु है। जिसमें लाग है, वह बूढ़ा भी हो तो जवान है। जिसमें लाग नहीं, गैरत नहीं, वह जवान भी मृतक है।
नक़ल में भी असल की कुछ-न-कुछ बू आ ही जाती है।
ऐश्वर्य के द्वेषी और शत्रु चारों ओर होते हैं। लोग जलती हुई आग को पानी से बुझाते हैं, पर राख माथे पर लगाई जाती है।
एक बार बिच्छू ने कछुए की पीठ पर नदी की यात्रा की थी। यह यात्रा उससे कम भयानक न थी।
बहुएँ एक-से-एक बढ़कर आज्ञाकारिणी।
जिसने यह कुआँ खोदा, उसी की आत्मा पानी को तरसे, यह कितनी लज्जा की बात है!"
गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता।
कदाचित् सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है।
अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शान्त होती, पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया।
"अपने घमंड में भूला हुआ है, आरज़ू-विनती न सुनेगा।"