आपने कभी दौलत की रफ्तार देखी है? नहीं न! तो आइए, इस उपन्यास में देखते हैं दौलत की रफ्तार। दौलत जब रफ्तार पकड़ती है तो सब कुछ बर्बाद करती चली जाती है। अनिल मोहन का देवराज चौहान सीरीज का उपन्यास 'रफ्तार'. बुरे वक्त की मार साढ़े चार अरब के हीरों को ले जाता जगमोहन, यूं ही, इत्तफाक से, खामखा ही पुलिस वालों के फेर में जा फंसा और खड़ा हो गया झंझट- क्योंकि- क्योंकि साढ़े चार अरब के हीरे गायब चले गए। कौन ले गया ? हर कोई इस बात से परेशान था ऊपर से एक और नई मुसीबत खड़ी हो गई कि जो भी डकैती में शामिल था, कोई बारी-बारी उनके कत्ल करने लगा और उसकी वजह किसी के समझ में नहीं आ रही थी ।