क्रिमिनोलॉजी की पढ़ाई कर रहा प्रशांत सरकार बेहद बड़बोला युवक था, ऐसा युवक जिसकी ‘पहले तोलो फिर बोलो‘ में कोई आस्था नहीं थी, यानि जो मन में आता बक देता। समस्या तब उत्पन्न हुई जब उसके मुंह से निकली हर बात सच होने लगी। दिन में वह जो कुछ भी कहता रात में घटित हो जाता। कैसे हो जाता था ये किसी को नहीं पता था। एक एक कर के तीन कत्ल हो गये और तीनों के ही बारे में वह अपनी गर्लफ्रैंड के साथ एडवांस में डिस्कस चुका था। ऐसे में पुलिस भला उस बात को इत्तेफाक कैसे मान सकती थी। मतलब प्रशांत सरकार का कत्ल के इल्जाम में जेल पहुंच जाना महज वक्त की बात थी।
पहली बार ऐसी कहानी पढ़ी है जिसका हर किरदार बेहद मनोरंजक है. राजेश का किरदार और उसकी जवाबदेही बेहद बढ़िया थी.... एसआई अनुराग का तेज़ तर्रार दिमाग़ भी बढ़िया था.
एक बात कहूं, मेरी तो लेखक की वजह से ही पढ़ने में रूचि बरकरार है नहीं तो बाकी लेखकों को पढ़ने का मन नहीं होता.
लेखक आप एक करोड़ का जूता, 3 दिन, 20 लाख का बकरा जैसी छोटी छोटी मगर रोचक कहानी भी लिख सकते हैं.... आजकल वैसे भी किसी के पास फ्री वक़्त नहीं है ऊपर से मोटी मोटी नहीं पढ़ी जाती.
The Author seems to have caught the Bollywood fever. The main characters are depicted , with a a view to appease a particular section by painting them as honest, principled, hardworking, considerate and above all as secular . The plot is weak and disjointed and the climax is concocted. Above all the impugned generous secular Police officer is kind to condone an illegal gun possession crime as an icing on cake . The characterisation is divorced from reality and superfluous.
पाठक साहेब आपको बहुत बहुत बधाई इतनी बढ़िया किताब के लिए साथ ही आपका लेखकीय पढ़ा आपने बहुत सही लिखा जो हिंदी के उपन्यास लिख कर आप लोग हिंदी का महिमामंडन कर रहे है वो लाजवाब हैं। किसको किलिष्ठ हिंदी की किताबे अब समझ में आती हैं मेरी ईश्वर से प्रार्थना है कि आप ऐसे लिखते रहे और हम पढ़ते रहे। शत शत नमन।