Nikhil Bagade

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सुन्न जितना नैचुरल है, फर्टाइल है ...शून्य उतना ही आर्टिफिशियल है...शून्य में कोई उपसर्ग- प्रत्यय जोड़ने से ही शब्द - निर्माण संभव है जैसे शून्यता, शून्यवाद, जनशून्य आदि।   सुन्न फर्टाइल है ...सुन्न की शाखाएँ-प्रशाखाएँ दूर - दूर तक फैली हैं ...शरीर सुन्न होता है ... आदमी सन्न रह जाता है ....जगह सुनसान होती है ...सन्नाटा छा जाता है ...सबमें सुन्न है ....शून्य कहीं नहीं।