प्राचीन भारत का बौद्ध इतिहास (Pracheen Bharat ka Boddha Itihas) (Hindi Edition)
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इतिहास - लेखन में इतिहासकार कुछ जोड़ते हैं, कुछ छोड़ते हैं और कुछ का चयन करते हैं। यह छोड़ना, जोड़ना और चयन ही इतिहास का स्वरूप तय करता है। फिर तो तय है कि ऐसा इतिहास - लेखन पूरी मानव - जाति का इतिहास नहीं हो सकता है।
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इतिहास - लेखन में इतिहासकार कुछ जोड़ते हैं, कुछ छोड़ते हैं और कुछ का चयन करते हैं। यह छोड़ना, जोड़ना और चयन ही इतिहास का स्वरूप तय करता है। फिर तो तय है कि ऐसा इतिहास - लेखन पूरी मानव - जाति का इतिहास नहीं हो सकता है।
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चिनुआ अचैबी ने लिखा है कि जब तक हिरन अपना इतिहास खुद नहीं लिखेंगे, तब तक हिरनों के इतिहास में शिकारियों की शौर्य - गाथाएँ गाई जाती रहेंगी।
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इसीलिए भारत के इतिहास में वैदिक संस्कृति उभरी हुई है, बौद्ध सभ्यता पिचकी हुई है और मूल निवासियों का इतिहास बीच - बीच में उखड़ा हुआ है।
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इतिहास सिर्फ वो नहीं है, जिसे शासकों ने लिखवाया है और जो लिखा गया है बल्कि इतिहास वो भी है, जिसे हमारे पुरखों ने सहा है, लेकिन लिखा नहीं गया है।
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यह विचित्र इतिहास - बोध है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद वैदिक युग आया। सिंधु घाटी की सभ्यता नगरीय थी, जबकि वैदिक संस्कृति ग्रामीण थी। उल्टा है।
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यह विचित्र इतिहास - बोध है कि सिंधु घाटी की सभ्यता के बाद वैदिक युग आया। सिंधु घाटी की सभ्यता नगरीय थी, जबकि वैदिक संस्कृति ग्रामीण थी। उल्टा है।
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भला कोई सभ्यता नगरीय जीवन से ग्रामीण जीवन की ओर चलती है क्या?
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सिंधु घाटी में बड़े - बड़े नगर थे, स्नागार थे, चौड़ी  - चौड़ी सड़कें थीं। बेहद उम्दा किस्म की सभ्यता थी। वहीं वैदिक युग में पशुचारक थे, कच्ची मिट्टी के घर थे, नरकूलों की झोंपड़ियाँ थीं। तुर्रा यह कि ये नरकूलों की झोंपड़ियाँ उसी पश्चिमोत्तर भारत में उगीं, जहाँ बड़े -बड़े सिंधु साम्राज्य के भवन थे।
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आपको ऐसा इतिहास - बोध उलटा नहीं लगता है?
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आप पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में लेखन - कला विकसित थी और फिर उसके बाद की वैदिक संस्कृति में पढ़ाने लगते हैं कि वैदिक युग में लेखन - कला का विकास नहीं हुआ था। वैदिक युग में लोग मौखिक याद करते थे और लिखते नहीं थे।   ऐसा भी होता है क्या? पढ़ी - लिखी सभ्यता अचानक अनपढ़ हो जाती है क्या?
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आप पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में लेखन - कला विकसित थी और फिर उसके बाद की वैदिक संस्कृति में पढ़ाने लगते हैं कि वैदिक युग में लेखन - कला का विकास नहीं हुआ था। वैदिक युग में लोग मौखिक याद करते थे और लिखते नहीं थे।   ऐसा भी होता है क्या? पढ़ी - लिखी सभ्यता अचानक अनपढ़ हो जाती है क्या?
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आप यह भी पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में मूर्ति - कला थी। फिर उसके बाद पढ़ाते हैं कि वैदिक युग में मूर्ति - कला नहीं थी।
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आप यह भी पढ़ाते हैं कि सिंधु घाटी की सभ्यता में मूर्ति - कला थी। फिर उसके बाद पढ़ाते हैं कि वैदिक युग में मूर्ति - कला नहीं थी।   क्या यह सब उलटा नहीं है?
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क्या यह सब उलटा ...
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भारत में स्तूप - स्थापत्य, लेखन - कला, मूर्ति - कला, बर्तन - कला आदि का विकास निरंतर हुआ है। कोई गैप नहीं है। यदि इतिहास में ऐसा गैप आपको दिखाई पड़ रहा है तो वह वैदिक संस्कृति को भारतीय इतिहास में ऐडजस्ट करने के कारण दिखाई पड़ रहा है।
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यह कैसा इतिहास - लेखन है कि जिन वेदों के खुद का ही ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त नहीं हैं, उन्हें ही ऐतिहासिक साक्ष्य मान लिया गया है।
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यह कैसा इतिहास - लेखन है कि जिन वेदों के खुद का ही ऐतिहासिक साक्ष्य प्राप्त नहीं हैं, उन्हें ही ऐतिहासिक साक्ष्य मान लिया गया है।
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आपने एक बार झूठ बोल दिया है कि हड़प्पा सभ्यता के बाद उत्तरी भारत में वैदिक युग आया है। अब इसे साबित करने के लिए आप दूसरा झूठ बोल रहे हैं कि उत्तरी भारत में ताम्र युग के बाद सीधे लौह युग आ गया।   आपने कांस्य युग की सभ्यता को वैदिक युग की झूठी तोप से उड़ा दिया।
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पश्चिमोत्तर भारत में ताम्र युग के बाद कांस्य युग आया था। सिंधु घाटी की सभ्यता कांस्य युग का प्रतीक है। मगर पूर्वी भारत में इतिहासकारों ने ताम्र युग के बाद सीधे लौह युग ला दिया और वे कांस्य युग को खा गए।
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भारत में मौजूद सभी स्तूपों को मौर्य काल के बाद का बताया जाना गलत है। अनेक स्तूप सिंधु घाटी सभ्यता के काल के हैं, कुछ सिंधु घाटी सभ्यता के बाद के हैं, कुछ मौर्य काल के हैं, कुछ मौर्य काल के बाद के भी हैं।
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इतिहास गवाह है कि सिंधु घाटी सभ्यता में भी स्तूप था और पूर्व मौर्य काल में भी स्तूप था। पिपरहवा का स्तूप मौर्य काल से पहले का है। खुद मौर्य काल में नए स्तूप बने और कई पूर्व मौर्य काल के स्तूपों की मरम्मत हुई, जिसमें निग्लीवा सागर का स्तूप शामिल है।
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आप सम्राट अशोक के निग्लीवा अभिलेख को पढ़ लीजिए, जिसमें लिखा है कि अपने अभिषेक के 14 वें वर्ष में उन्होंने निगाली गाँव में जाकर कोनागमन (कनकमुनि ) बुद्ध के स्तूप के आकार को वर्धित करवाया था।
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कनकमुनि ( कोनागमन ) बुद्ध का स्तूप सम्राट अशोक के काल से पहले बना था, जिसका संवर्धन उन्होंने कराया था। गौतम बुद्ध से कनकमुनि बुद्ध अलग थे और पहले थे।
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बुद्ध के महापरिनिर्वाण के बाद उनकी अस्थियों को आठ भागों में बाँटा गया तथा उन पर स्तूपों का निर्माण किया गया। जाहिर है कि स्तूपों की निर्माण - कला बुद्ध से पहले भी मौजूद थी।
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बुद्ध ने खुद महापुरुषों की शरीर धातु पर स्तूप बनाने को कहा था। उन्होंने अपने प्रिय शिष्य आनंद को चौराहे पर स्तूप निर्मित करने की बात कही थी।
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प्राकृत भाषा में " दास " ( दसन ) का अर्थ द्रष्टा है। मगर आर्यों ने सांस्कृतिक दुश्मनी के कारण अपनी पुस्तकों में " दास " का अर्थ " गुलाम/ नौकर " कर लिए हैं।
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यह तो बहुत बताया जाता है कि ऋग्वेद में गंगा का एक बार और यमुना का तीन बार वर्णन है, मगर यह बहुत कम बताया जाता है कि ऋग्वेद में स्तूप का वर्णन दो बार
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भारत के इतिहास में बुद्ध के बाद मीनाण्डर, मीनाण्डर के बाद कबीर और कबीर के बाद नानक का नाम आता है, जिनके मृत शरीर को भी अपनाने के लिए जनता व्याकुल थी।
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सम्राट अशोक के बाद पश्चिमोत्तर तथा उत्तरी भारत में सर्वाधिक स्तूप बनवाने का श्रेय कनिष्क को है।
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देशी और विदेशी दोनों स्रोत बताते हैं कि गौतम बुद्ध के पहले बुद्ध थे। साहित्यिक और पुरातात्विक स्रोत भी बताते हैं कि गौतम बुद्ध से पहले बुद्ध थे।
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गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक नहीं थे। वे तो बौद्ध धर्म के प्रवर्तक थे। संस्थापक और प्रवर्तक में अंतर होता
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है।
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संस्थापक किसी धर्म की स्थापना करता है, जबकि प्रवर्तक पहले से चले आ रहे किसी धर्म को परिमार्जित करते हुए नए सिरे से चालू करता है।
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बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध से पहले भी था।   न केवल गौतम बुद्ध के फादर बल्कि उनके फादर इन लाॅ भी पहले से ही बौद्ध धारा के थे।   इसलिए गौतम बुद्ध के फादर इन लाॅ का नाम सुप्पबुद्ध था। सुप्पबुद्ध नाम बौद्ध धारा का है।
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फाहियान ने बताए हैं कि देवदत्त के अनुयायी शाक्य मुनि बुद्ध के प्रति श्रद्धाभाव निवेदित नहीं करते हैं बल्कि वे लोग पहले के तीन बुद्धों में श्रद्धाभाव निवेदित करते हैं, वे बुद्ध थे - ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध।
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फाहियान के यात्रा - काल तक बुद्ध से पहले के बुद्ध की परंपराएँ जिंदा थीं।
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गोतम बुद्ध से पहले के तीन बुद्ध ककुसंध, कोणागमन और कस्सप बुद्ध का इतिहास क्यों नहीं लिखा, जबकि फाहियान इनके स्मृति - स्थलों तक खुद गया, आँखों से देखा और ये भी बताया कि ये स्मृति- स्थल कहाँ और कितनी दूरी पर हैं।
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यदि सम्राट अशोक के अभिलेख और फाहियान का यात्रा - विवरण सच है तो फिर कई बुद्ध हुए यह झूठ कैसे है?
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28 बुद्धों में से सप्तबुद्ध ( The Seven Buddhas ) की स्तुति बौद्ध साहित्य में अधिक लोकप्रिय है। दीघनिकाय के महापदानसुत में सप्तबुद्ध का विस्तृत वर्णन है। सप्तबुद्ध में विपस्सी बुद्ध, सिखी बुद्ध, वेस्सभू बुद्ध, ककुसंध बुद्ध, कोणागमन बुद्ध, कस्सप बुद्ध और गोतम बुद्ध शामिल हैं।
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संस्कृत साहित्य में सप्तर्षि की अवधारणा बौद्ध परंपरा के सप्तबुद्ध की देन है।
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28 बुद्धों की परंपरा सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर गौतम बुद्ध तक फैली हुई है।
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कस्सप बुद्ध, ककुच्छंद बुद्ध और कोणागमन बुद्ध के जन्मस्थान पर जाने का यात्रा - विवरण फाहियान ने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में लिखा है।
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28 बुद्धों के नामों से हम सिंधु घाटी सभ्यता से गौतम बुद्ध के काल तक की सभ्यताई यात्रा कर सकते हैं।
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आनुवांशिकी विज्ञान ने राखीगढ़ी में मिले नर - कंकालों का परीक्षण कर बता दिया कि इनमें आर्य जीन नहीं हैं तो मामला शीशे की तरह साफ हो गया कि राखीगढ़ी के निवासी आर्य नहीं थे। राखीगढ़ी द्रविड़ों की सभ्यता थी।
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एक विपस्सी बुद्ध थे। वे अंदर और बाहर की दुनिया को विशेष रूप से देखते थे। इसीलिए उनका नाम विपस्सी बुद्ध पड़ा। उन्हीं के नाम पर बौद्ध सभ्यता में विपस्सना का प्रचलन हुआ।
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फाहियान जब भारत आए थे, तब विपस्सी बुद्ध को गुजरे हुए कोई 1300 साल बीत चुके थे। इसीलिए वे विपस्सी बुद्ध का स्मारक नहीं देख पाए। वे काल - कवलित हो चुके थे। फाहियान ने गोतम बुद्ध से ठीक पहले के सिर्फ तीन बुद्धों के स्मारक देखे थे, वे बुद्ध हैं - ककुसंध, कोणागमन और कस्सप।
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सप्त बुद्धों की परंपरा विपस्सी बुद्ध से आरंभ होती है और गोतम बुद्ध तक चलती है। इसलिए जहाँ - जहाँ सप्तबुद्ध का अंकन है, वहाँ - वहाँ विपस्सी बुद्ध भी मौजूद हैं।
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पाँचवीं सदी के आरंभ में फाहियान भारत आए थे। उन्होंने अपनी पुस्तक के इक्कीसवें खंड में कोनागमन बुद्ध के स्तूप का आँखों देखा वर्णन किया है।   कोनागमन बुद्ध का स्तूप मौर्य काल से काफी पहले मौजूद था। इतना पहले कि वह अशोक के समय तक जर्जर हो चुका था। इसीलिए अशोक को उसकी मरम्मत करानी पड़ी। स्तूप निगाली गाँव के पास था। अशोक ने कोनागमन बुद्ध की स्मृति में स्तूप के पास स्तंभ लिखवाया है। स्तंभ पर " बुधस कोनाकमनस " लिखा है। ( चित्र -17
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हमारे पास अनेक पुरातात्त्विक और साहित्यिक सबूत हैं कि गौतम बुद्ध से पहले भी बुद्ध थे और गौतम बुद्ध से पहले भी स्तूप
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