उसी इज़राइल पर फ़िलिस्तीन क्रूरता बरतने और नरसंहार करने के आरोप लगाता है। क्या हिंसा का शिकार समाज अपने भोगे हुए की तरह या उससे भी ज़्यादा हिंसा करने की ख़्वाहिश रखता है? गांधी ने तभी अंहिसा पर इतना ज़ोर दिया। अहिंसा नफ़रतों के कुचक्र से मुक्ति का मार्ग है। हम कब तक फँसे रहेंगे?

