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Kindle Notes & Highlights
by
Jaun Elia
Read between
March 19 - April 21, 2022
आज का दिन भी ऐश से गुज़रा सर से पा तक बदन सलामत है
रोया हूँ तो अपने दोस्तों में पर तुझसे तो हँस के ही मिला हूँ
मैंने कहा कि तुझे मालूम है कि मैं सालहा-साल से किस अज़ाब में मुब्तला (फँसा) हूँ, मेरा दिमाग़ दिमाग़ नहीं भूगल है, आँखें हैं कि ज़ख़्म की तरह टपकती हैं। अगर पढ़ने या लिखने के लिए काग़ज़ पर चंद सानियों को भी नज़र जमाता हूँ तो ऐसी हालत गुज़रती है कि जैसे मुझे आशूबे-चश्म की शिकायत हो और मानो जहन्न्म के अंदर जहन्न्म पढ़ना पड़ रहा हो। ये दूसरी बात है कि मैं अब भी अपने ख़्वाबों को नहीं हारा हूँ। मेरी आँखें दहकती हैं मगर मेरे ख़्वाबों के ख़ुश्क चश्मे की लहरें अब भी मेरी पलकों को छूती हैं।

