Jaun Elia: Ek Ajab Ghazab Shayar । जौन एलिया : एक अजब-ग़ज़ब शायर (Hindi Edition)
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आज का दिन भी ऐश से गुज़रा सर से पा तक बदन सलामत है
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रोया हूँ तो अपने दोस्तों में पर तुझसे तो हँस के ही मिला हूँ
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मैंने कहा कि तुझे मालूम है कि मैं सालहा-साल से किस अज़ाब में मुब्तला (फँसा) हूँ, मेरा दिमाग़ दिमाग़ नहीं भूगल है, आँखें हैं कि ज़ख़्म की तरह टपकती हैं। अगर पढ़ने या लिखने के लिए काग़ज़ पर चंद सानियों को भी नज़र जमाता हूँ तो ऐसी हालत गुज़रती है कि जैसे मुझे आशूबे-चश्म की शिकायत हो और मानो जहन्न्म के अंदर जहन्न्म पढ़ना पड़ रहा हो। ये दूसरी बात है कि मैं अब भी अपने ख़्वाबों को नहीं हारा हूँ। मेरी आँखें दहकती हैं मगर मेरे ख़्वाबों के ख़ुश्क चश्मे की लहरें अब भी मेरी पलकों को छूती हैं।