निग्रह एक के बाद एक होता है—इंद्रियों का भी, वस्तुओं का भी। एक साथ सबकुछ छूटता भी नहीं। छूट जाए तो जीवन चलता नहीं। जीवन आसक्ति के बीच ही साँस लेता है। आसक्ति डोर है। वह टूटी और जीवन खत्म। कम-से-कम तब जब जीवन को ध्यान के साथ जीना न आ जाए। उन्होंने आश्रम प्रबंधकों से कहकर एक कक्ष में ज्यादा-से-ज्यादा विभिन्न रुचियों का भोजन रखवा दिया। दो-तीन दिन रामकृष्ण उस कक्ष में ज्यादा-से-ज्यादा समय रहे, फिर सब कुछ सामान्य हो गया।

