विवेकानंद ने स्वयं इस दशा का उल्लेख करते हुए बताया—‘‘नंगे पैर दफ्तर-दर-दफ्तर नौकरी के लिए भटका, लेकिन कोई ठोस बात हाथ नहीं लगी। यह जीवन के यथार्थ से मेरा पहला साक्षात्कार था। मुझे लगा कि जीवन में कमजोर और गरीबों के लिए कोई जगह नहीं है। कुछ समय पहले तक जो लोग मेरी मदद करके अपने आपको गौरवान्वित समझते थे, उन सभी ने अपने मुँह फेर लिये। मुझे सारी दुनिया शैतान का घर नजर आने लगी। एक

