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हम देश, विदेश कहीं भी हों, पर होगा तेरा ध्यान सदा। तेरा ही पुत्र कहाने में होगा हमको अभिमान सदा।।
दाँव पर सबकुछ लगा है, रुक नहीं सकते। टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते।
फर्क इससे पड़ता है कि जहाँ खड़ा है, या जहाँ उसे खड़ा होना पड़ा है, वहाँ उसका धरातल क्या है?
चौराहे पर लुटता चीर, प्यादे से पिट गया वजीर, चलूँ आखिरी चाल कि बाजी छोड़ विरक्ति रचाऊँ मैं? राह कौन-सी जाऊँ मैं?
जो जितना ऊँचा, उतना ही एकाकी होता है, हर भार को स्वयं ही ढोता है, चेहरे पर मुसकानें चिपका, मन-ही-मन रोता है।
मेरे प्रभु! मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देना गैरों को गले न लगा सकूँ इतनी रुखाई कभी मत देना।

