जब वह आत्मालोचन करता है, मन की परतें खोलता है, स्वयं से बोलता है, हानि-लाभ का लेखा-जोखा नहीं, क्या खोया, क्या पाया का हिसाब भी नहीं, जब वह पूरी जिंदगी को ही तौलता है, अपनी कसौटी पर स्वयं को ही कसता है, निर्ममता से निरखता, परखता है, तब वह अपने मन से क्या कहता है! इसी का महत्त्व है, यही उसका सत्य है।

