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Kindle Notes & Highlights
जो नहीं जानते उसे न कहो , बल्कि जो जानते हो वह भी सब का सब न कहो । –हज़रत अली
जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने मेहमां थे बिन बुलाए थे
है ग़लत उस को बेवफ़ा कहना हम कहां के धुले धुलाए थे
आज कांटों भरा मुक़द्दर है हम ने गुल भी बहुत खिलाए थे
दिल पर किसने दस्तक दी तुम हो या तनहाई है
उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो ख़र्च करने से पहले कमाया करो
ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
चांद सूरज कहां , अपनी मन्ज़िल कहां ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
हों निगाहें ज़मीन पर लेकिन आसमां पर निशाना रक्खा जाए
यार ! अब उस की बेवफ़ाई का नाम कुछ शायराना रक्खा जाए
हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
डुबो कर मुझ को ख़ुश होता है दरिया उसे तो डूब मरना चाहिए था
कितने सपने देख लिए आंखों को हैरानी है
बुलन्दियों का तसव्वुर2 भी खूब होता है कभी - कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं
रक़ीब2, दोस्त , पड़ोसी , अज़ीज़ , रिश्तेदार मेरे खिलाफ़ सभी के बयान मिलते हैं
अपना मालिक अपना ख़ालिक़2 अफ़ज़ल3 है आती जाती सरकारों सेक्या लेना
वह जो मुंसिफ़3 है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा हम भी रखते हैं ज़ुबां पहले ख़ता पूछेंगे
अब अगर कम भी जियें हम तो कोई रंज नहीं हमको जीने का सलीक़ा है यही काफ़ी है
क्या ज़रूरी है कभी तुम से मुलाक़ातभीहो तुमसे मिलने की तमन्ना है यही काफ़ी है
सबको रुसवा बारी बारी कियाकरो हर मौसममेंफ़तवे जारी किया करो
रोज़वही एक कोशिश ज़िन्दा रहने की मरने की भी कुछ तय्यारीकिया करो
आज तुम्हारी याद न आई आज तबीयत ठीक नहीं है
मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था मुझेसुनातेरहेलोगवाक़ियामेरा
रेंगते रहते हैं हम सदियों से सदियां ओढ़कर हम नये थे ही कहां जो अबपुराने हो गये
है फ़ुर्सत तो किसी से इश्क़ कर ले हमारी ही तरह बेकार हो जा
पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे और अब शहर जलें तो हैरत नइ होती
सोच रहा हूं आख़िर कब तक जीना है मर जाता तो इतनी फ़ुरसत नइ होती
खिज़र1
सही राह बताने वाले फ़रिश्ते का नाम
तहरीर1
लिखित विवरण
दहशत का माहौल है सारी बस्ती में क्या कोई अख़बार निकलने वाला है
महंगी कालीनें लेकर क्या कीजेगा अपना घर भी एक दिन जलने वाला है
वह मंज़िल पर अक्सर देर से पहुंचे हैं जिन लोगों के पास सवारी रहती है
आंख में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो ज़िन्दा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
साल भर ईद का रस्ता नहीं देखा जाता वह गले मुझसे किसी और बहाने लग जाए
एक दिन इस शहर की कीमत लगाई जाएगी गांव में थोड़ी बहुत खेती-किसानी और है

