नाराज़
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Read between August 11 - August 25, 2020
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जो न​हीं जान​ते उसे न​ कहो , बल्कि जो जान​ते हो वह भी सब का सब न​ कहो । –हज़रत अली
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जितने आँसू थे सब थे बेगाने जितने मेहमां थे बिन बुलाए थे
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है ग़लत उस को बेवफ़ा कहना हम कहां के धुले धुलाए थे
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आज कांटों भरा मुक़द्दर है हम ने गुल भी बहुत खिलाए थे
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दिल पर किसने दस्तक दी तुम हो या तनहाई है
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उंगलियां यूं न सब पर उठाया करो ख़र्च करने से पहले कमाया करो
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ज़िन्दगी क्या है ख़ुद ही समझ जाओगे बारिशों में पतंगें उड़ाया करो
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शाम के बाद जब तुम सहर देख लो कुछ फ़क़ीरों को खाना खिलाया करो
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चांद सूरज कहां , अपनी मन्ज़िल कहां ऐसे वैसों को मुंह मत लगाया करो
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हों निगाहें ज़मीन पर लेकिन​ आसमां पर निशाना रक्खा जाए
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यार ! अब उस की बेवफ़ाई का नाम कुछ शायराना रक्खा जाए
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हम से पहले भी मुसाफ़िर कई गुज़रे होंगे कम से कम राह के पत्थर तो हटाते जाते
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डुबो कर मुझ को ख़ुश होता है दरिया उसे तो डूब मरना चाहिए था
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कितने सपने देख लिए आंखों को हैरानी है
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बुलन्दियों का तसव्वुर2 भी खूब होता है कभी - कभी तो मेरे पर निकलने लगते हैं
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रक़ीब2, दोस्त , पड़ोसी , अज़ीज़ , रिश्तेदार मेरे खिलाफ़ सभी के बयान मिलते हैं
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अपना मालिक अपना ख़ालिक़2 अफ़ज़ल3 है आती जाती सरकारों सेक्या लेना
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वह जो मुंसिफ़3 है तो क्या कुछ भी सज़ा दे देगा हम भी रखते हैं ज़ुबां पहले ख़ता पूछेंगे
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अब अगर कम भी जियें हम तो कोई रंज नहीं हमको जीने का सलीक़ा है यही काफ़ी है
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क्या ज़रूरी है कभी तुम से मुलाक़ातभीहो तुमसे मिलने की तमन्ना है यही काफ़ी है
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सबको रुसवा बारी बारी कियाकरो हर मौसममेंफ़तवे जारी किया करो
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रोज़वही एक कोशिश ज़िन्दा रहने की मरने की भी कुछ तय्यारीकिया करो
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आज तुम्हारी याद न आई आज तबीयत ठीक नहीं है
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मैं पत्थरों की तरह गूंगे सामईन में था मुझेसुनातेरहेलोगवाक़ियामेरा
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रेंगते रहते हैं हम सदियों से सदियां ओढ़कर हम नये थे ही कहां जो अबपुराने हो गये
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है फ़ुर्सत तो किसी से इश्क़ कर ले हमारी ही तरह बेकार हो जा
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पहले दीप जलें तो चर्चे होते थे और अब शहर जलें तो हैरत नइ होती
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सोच रहा हूं आख़िर कब तक जीना है मर जाता तो इतनी फ़ुरसत नइ होती
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खिज़र1
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सही राह बताने वाले फ़रिश्ते का नाम
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तहरीर1
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लिखित विवरण
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दहशत का माहौल है सारी बस्ती में क्या कोई अख़बार निकलने वाला है
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महंगी कालीनें लेकर क्या कीजेगा अपना घर भी एक दिन जलने वाला है
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वह मंज़िल पर अक्सर देर से पहुंचे हैं जिन लोगों के पास सवारी रहती है
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आंख में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो ज़िन्दा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
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साल भर ईद का रस्ता नहीं देखा जाता वह गले मुझसे किसी और बहाने लग जाए
एक दिन इस शहर की कीमत लगाई जाएगी गांव में थोड़ी बहुत खेती-किसानी और है