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चूड़ी के टुकड़े थे, पैर में चुभते ही ख़ूँ बह निकला नंगे पाँव खेल रहा था, लड़का अपने आँगन में बाप ने कल फिर दारू पी के माँ की बाँह मरोड़ी थी
कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुए हैं कब से टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को
तेरी सूरत जो भरी रहती है आँखों में सदा अजनबी लोग भी पहचाने से लगते हैं मुझे तेरे रिश्ते में तो दुनिया ही पिरो ली मैं ने!

