Karan Kumar

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कोई सूरत भी मुझे पूरी नज़र आती नहीं आँख के शीशे मेरे चुटख़े हुए हैं कब से टुकड़ों टुकड़ों में सभी लोग मिले हैं मुझ को
रात पश्मीने की
by Gulzar
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