Karan Kumar

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कोई गुज़रा है वहां से शायद धूप में डूबा हुआ ब्रश लेकर बर्फ़ों पर रंग छिड़कता हुआ-जिस के क़तरे पेड़ों की शाख़ों पे भी जाके गिरे हैं
रात पश्मीने की
by Gulzar
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