Karan Kumar

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सलाख़ों के पीछे पड़े इन्क़लाबी की आँखों में भी राख उतरने लगी है। दहकता हुआ कोयला देर तक जब ना फूँका गया हो, तो शोले की आँखों में भी मोतिये की सफ़ेदी उतर आती है!
रात पश्मीने की
by Gulzar
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